Saturday, 2 February 2013

मैं हूँ वृक्ष



-होदिल सिंह

मैं हूँ एक वृक्ष
रखता हूँ एक लक्ष
मैं हूँ बड़ा दानी
सबको देता हूँ भोजन-पानी
मैं देता हूँ हरियाली
तभी तो आती है खुशहाली।

मत तोड़ो मेरे पत्ते
न समझो उन्हें सस्ते
हवा ये देते हैं
दवा ये देते हैं
पत्तों से ही होता है
प्रकाश संस्लेशन
तभी बन पाती है
जीवनदायी ऑक्सीजन।

मत काटो मेरी डाली
यह है भोली-भाली
बनती है इसी से इमारती लकड़ी
फूलों और फलों की
इसी ने बाँह पकड़ी
डालियों पर बनाते हैं पक्षी घोंसले
पक्षियों के गीत बढ़ाते हैं
जन-जन के हौंसले।

मत काटो मुझे जड़ से
गिर जाऊँगा मैं धड़ से
ये ही है जो मुझे जिन्दा रखती है
इसी से मेरी शिरायें धड़कती हैं
मैं कैसे इनके उपकार भूल जाऊँ
ये ही बनाती है मृदा को उपजाऊ।

-होदिल सिंह
प्रवक्ता (हिन्दी)

No comments:

Post a Comment