-कंछिद मल
जो वंचित विद्या से रहें, जीवन भर पछताय
घोर परिश्रम से भी, ना जीवन सफल हो पाय
जीवन सफल हो पाय, विकास ना कुछ कर पाता
औरों की चाकरी करने में, जीवन कट जाता
कहै निर्मल नादान, बात घनी है यह चर्चित
उसका जीवन नर्क समान, रहे जो विद्या वंचित।।
विद्या धन उत्तम घना, लेना इसको पाय
बिन विद्या के व्यक्ति, घना रहा पछताय
घना रहा पछताय, भटकता वो घना डौले
चुपचाप चाकरी करै, ना मुख से कुछ भी बोले
कहै निर्मल नादान, कि जीवन लगता मिथ्या
वह होता पशु समान, पास ना जिसके विद्या।।
चिंता और चिता में, एक बिन्दु का अन्तर दिया बताय
चिता फूँके मृतक को, पर चिंता सजीव जलाय
चिंता सजीव जलाय, भेद ना इसका पाया
एक बिंदु के बीच, सभी कुछ इसमें छाया
कहै निर्मल नादान, सोच करना है मिथ्या
चाहे कितना ही कर ले यत्न, मिटे ना तेरी चिंता।।
चिन्ता भयंकर चिता से, सुनना चित्त लगाय
चिता एक बार फूँकती, पर चिन्ता रोज जलाय
चिन्ता रोज जलाय, निकल ना इससे पाता
हो गहरी चिन्ता जिसे, वो जीते जी मर जाता
कहै निर्मल नादान, सोच करता तू मिथ्या
कर ईश्वर का भजन, मिटे जब तेरी चिन्ता।।
साईं जग में दो बड़े, दामोदर और दाम
दामोदर बैठा रहे, और दाम कराये काम
दाम कराये काम, करें सब इसकी पूजा
दाम से बढ़कर मित्र नहीं, कोई जग में दूजा
कहै निर्मल नादान, गौर कर देखो माहीं
दामोदर रहें लुप्त, दाम दीखे जग माहीं।।
- कंछिद मल
टी.जी.टी. (सामाजिक विज्ञान)
राजकीय उच्चतम माध्यमिक बाल विद्यालय
न्यू अशोक नगर, दिल्ली-110096
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